Shringar Darshan
माता यशोदा अपने बाल गोपाल का समयानुकूल ललित श्रृंगार करती है। उबटन लगाकर स्नान कराती है। श्यामसुन्दर को पीताम्बर धारण कराती है। ब्रजसुन्दरी गण और भक्त उनका परम रसमय दर्शन करके अपने आपको धन्य मानते हैं। प्रभु यशोदा माँ की गोद में विराजमान है, करमें वेणु और मस्तक पर मयूर पंख की छवि मनोहारिणी है। कही लाला के नजर न लग जाय की भावना से काजल टीकला लगाती है।
श्रृंगार नित्य में सामान्य होते हैं किन्तु उत्सव महोत्सव मनोरथादि पर भारी एवं विभिन्न आभूषणों को धराया जाता है।
श्रृंगार चार प्रकार की भावना के कहे जाते हैः-
(१) कटि पर्यन्त (२) मध्य के (३) छेड़ा के (४) चरणारविन्दनार्थ
जिनमें आभूषण ऋतुनुसार धराये जाते हैं।
उष्णकाल में मोती – फाल्गुन में सुवर्ण तथा दूसरी ऋतु में रत्न जटित।
कमल सुख देखत कोन अधाय।
सुनरी सखी लोचन अति मेरे, मुदित रहे अरूझाय॥
युक्ता माल लाल उर उपर, जनु फूली बन राय।
गोवर्धन घर अंग-अंग पर कृष्णदास बलि जाय॥
The next darshana follows the first by hour and is called shringar. Shrinathji is dressed carefully from head to foot, and a garland of flowers is placed around his neck. A Mukhiya holds a mirror in front of him so that he can satisfy himself that, he is well dressed. This is his play hour like that of any other child, and he is offered dry fruits and sweets representing food brought to him by his beloved gopis. This explains why he is called gopivallabha.
It is only after this meal that Shrinathji’s flute is placed in his hand, so that he can delight Swamiji – Shri Radha – with the tunes she loves. The ragas sung during this darshana are Ramakali, Gunakali and Bilaval. The poet Nandadas is considered the main singer.